विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर डोंबिवली में सत्ताधारी शिवसेना और भाजपा के बीच विवाद देखने को मिल रहा है।
इस बार विवाद तब शुरू हुआ जब मुंबई-गोवा हाईवे परियोजना के निर्माण में हो रही देरी को लेकर शिवसेना के उप जिला अध्यक्ष राजेश कदम सहित कुछ शिवसेना नेताओं ने रविवार को कल्याण के लोकसभा सांसद और मुख्यमंत्री के बेटे श्रीकांत शिंदे से मुलाकात की और एक पत्र देकर मांग की कि हाईवे के निर्माण में हो रही देरी के कारण उनकी देखरेख में इस हाईवे का काम आगे बढ़ाया जाए।
कदम ने कहा कि हाईवे के अधूरे काम के कारण मुंबई और ठाणे में रहने वाले कोंकण के लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है। मुंबई-गोवा हाईवे का काम लोक निर्माण विकास मंत्री रवींद्र चव्हाण का विभाग कर रहा है, जो डोंबिवली से भाजपा विधायक हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि शिवसेना नेताओं की यह मांग रवींद्र चव्हाण पर कटाक्ष करने के उद्देश्य से की गई है, क्योंकि शिंदे की सेना के नेता डोंबिवली सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, जहां से पिछले कई वर्षों से भाजपा जीत रही है।
इस मुद्दे पर भाजपा ने भी कड़ी आपत्ति जताई है और भाजपा नेता शशिकांत कांबले ने कहा है कि शिवसेना नेताओं द्वारा दिया गया बयान गलत है। विधानसभा चुनाव से पहले महायुति को बाधित करने के उद्देश्य से इस तरह का बयान दिया जा रहा है। कांबले ने यह भी मांग की कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कल्याण के लोकसभा सांसद को अपने स्थानीय नेताओं से इस तरह के बयान देने से मना करना चाहिए।
सोमवार को इसी मुद्दे पर भाजपा नेता नंदू परब ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि चव्हाण साहब पर निशाना साधना अनुचित है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने मुंबई-गोवा हाईवे मार्ग पर कई काम किए हैं, जो कई वर्षों से लंबित था।
परब ने शिवसेना के स्थानीय नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान गठबंधन के नियमों का पालन किया और शिवसेना उम्मीदवार श्रीकांत शिंदे को जिताने के लिए काम किया, लेकिन निरंजन डावखरे की मदद करने के लिए शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव के दौरान शिवसेना नेता दिखाई नहीं दिए।
आपको बता दे इसके पहले लोकसभा चुनाव के पहले भी कल्याण और डोंबिवली में दोनो पार्टियों के बीच इस तरह की तकरार देखने को मिली थी. लेकिन जैसे ही लोकसभा का चुनाव जाहिर हुआ दोनो पार्टी युति के धर्म का पालन करते हुए दिख रही थी.